Saturday, October 5, 2019

सेवा राष्ट्र भक्त स्वयं सेवक सुर्यनारायण राव

सेवा कार्य के आग्रही के. सूर्यनारायण राव

संघ में ‘सुरुजी’ के नाम से प्रसिद्ध वरिष्ठ प्रचारक श्री के. सूर्यनारायण राव का जन्म 20 अगस्त, 1924 को कर्नाटक के मैसूर नगर में हुआ था। वैसे यह परिवार इसी राज्य के ग्राम कोरटगेरे (जिला तुमकूर) का मूल निवासी था। उनके पिता श्री कोरटगेरे कृष्णप्पा मैसूर संस्थान में सहायक सचिव थे। उन्होंने पूज्य गोंडवलेकर महाराज से तथा उनकी पत्नी श्रीमती सुंदरप्पा ने ब्रह्मानंदजी से दीक्षा ली थी। अतः धर्म के प्रति प्रेम सुरुजी को घर से ही प्राप्त हुआ।
परिवार का संघ से भी बहुत लगाव था। संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी मैसूर प्रवास के समय उनके घर में ही रुकते थे। ‘सुरुजी’ से छोटे चार भाई और एक बहन थी। उनके एक भाई के. नरहरि भी प्रचारक थे. पर, पिताजी की सेवानिवृत्ति के बाद घर की आर्थिक परेशानी को देखकर श्री गुरुजी ने स्वयं उन्हें गृहस्थ जीवन में जाने की अनुमति दी। ‘सुरुजी’ की बहन रुक्मणि अक्का भी राष्ट्र सेविका समिति की अ.भा. सहकार्यवाहिका रहीं।
‘सुरुजी’ 1942 में बंगलुरू में स्वयंसेवक बने। बीएससी. कर 1946 में उनका प्रचारक जीवन प्रारम्भ हुआ। 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद पुलिस ने उन्हें बहुत प्रताड़ित किया। उनके घर की तलाशी ली गई। स्थानीय कांग्रेसी सांसद केशव अयंगर ने हजारों लोगों के साथ उनके घर पर हमला बोल दिया। दो महीने बाद वे जेल से छूटकर नागपुर गए और बालासाहब देवरस से मिले। फिर उनके कहने पर तुमकूर में एक आश्रम में रहकर वे भूमिगत गतिविधियां चलाते रहे। सितम्बर में वे फिर गिरफ्तार कर लिये गए। वहां से छह महीने बाद 10 मार्च, 1949 को रिहा हुए।
प्रचारक जीवन में ‘सुरुजी’ 1970 तक कर्नाटक में ही रहे। इसके बाद 1972 से 84 तक तमिलनाडु के प्रांत प्रचारक तथा 1989 तक दक्षिण भारत में क्षेत्र प्रचारक के नाते काम किया। इस दौरान उनका केन्द्र चेन्नई रहा। सन् 1970 से 72 तक वे सह क्षेत्र प्रचारक भी रहे। तमिलनाडु में संघ को उत्तर भारतीय और ब्राह्मणों का संगठन माना जाता था। हिन्दी और हिन्दू का वहां भारी विरोध था, पर ‘सुरुजी’ वहां डटे रहे। संघ के शारीरिक विभाग और घोष में भी उनकी बहुत रुचि थी। स्वामी विवेकानंद के साहित्य का उन्हें गहरा अध्ययन था। विवेकानंद केन्द्र, कन्याकुमारी के मार्गदर्शक के नाते उन्होंने कई जटिल समस्याएं सुलझाईं।
‘सुरुजी’ सामाजिक क्षेत्र के प्रमुख लोगों से लगातार संपर्क बनाए रखते थे। साधु-संतों के प्रति भी उनके मन में बहुत आदर था। दक्षिण में विश्व हिन्दू परिषद की कार्य वृद्धि में उनका बड़ा योगदान रहा। सन् 1969 में उडुपि में विश्व हिन्दू परिषद का एक बड़ा सम्मेलन हुआ। इसमें संतों ने ‘हिन्दवः सोदराः सर्वेः, न हिन्दू पतितो भवेत। मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र समानता’ का उद्घोष किया। यह सम्मेलन ‘सुरुजी’ के परिश्रम और संपर्कों से ही संभव हो सका था।
सन् 1989 में संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की जन्मशती के अवसर पर संघ में ‘सेवा विभाग’ का गठन कर सेवा कार्य बढ़ाने पर जोर दिया गया। पूरे देश में ‘सेवा निधि’ एकत्र हुई। इससे सेवा कार्यों का विस्तार तथा पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं का व्यापक तंत्र खड़ा हुआ। इन्हें संभालने के लिए पहले यादवराव जोशी और फिर 1990 में ‘सुरुजी’ को अखिल भारतीय सेवा प्रमुख बनाया गया। यह काम नया था, पर ‘सुरुजी’ ने पूरे देश में प्रवास कर इसे व्यवस्थित रूप प्रदान किया। उन्होंने ‘एक शाखा, एक सेवा कार्य’ का मंत्र दिया। इसीलिए आज संघ की पहचान शाखा के साथ ही सेवा कार्यों से भी होती है।
‘सुरुजी’ संघ के चलते-फिरते अभिलेखागार थे। वयोवृद्ध होने पर भी वे तनाव से मुक्त तथा उत्साह से युक्त रहते थे। संघ का काम नये क्षेत्रों तथा नयी पीढ़ी में पहुंचते देखकर वे बहुत प्रसन्न होते थे। इसी संतोष के साथ 91 वर्ष की दीर्घायु में 18 नवम्बर, 2016 को बंगलुरू में उनका निधन हुआ।

Sunday, September 29, 2019

विश्‍व हिंदू परिषद गुरुग्राम में शुरू करेगा वेद यूनिवर्सिटी, पेड़ों के नीचे होगी पढ़ाई

विश्‍व हिंदू परिषद गुरुग्राम में शुरू करेगा वेद यूनिवर्सिटी, पेड़ों के नीचे होगी पढ़ाई






अशोक सिंघल वेद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय (Ashok Singhal Ved vigyan evam praudyogikee vishwavidyalaya) में अगले साल से पढ़ाई शुरू हो जाएगी. ये विश्‍वविद्यालय (University) गुरुग्राम में तैयार हो रहा है.


पुराने समय को ध्‍यान में रखते हुए यहां पर कुछ क्‍लास को पेड़ के नीचे भी लगाया जाएगा. जैसे प्राचीन काल में होता था. इसके अलावा वैदिक मंत्र और गीता के पाठ को सुबह से शाम तक विभिन्‍न माध्‍यमों से कैंपस में लोगों को सुनाया जाएगा.


Dev Sinthal ने सूत्रों के हवाले से बताया कि कैंपस में एक वैदिक टावर भी बनाया जाएगा, एक ऑडियो-विजुअल स्टूडियो के साथ जिसके अलग-अलग फ्लोर पर हर वेद और उससे जुड़ा साहित्य मौजूद होगा. यहां पर सुरभि सदन (गौशाला), मंदिर और मेडिटेशन हॉल के अलावा यज्ञ शाला भी होगी.



ये यूनिवर्सिटी गुरुग्राम में 39.68 एकड़ में तैयार हो रही है. इसका निर्माण कई चरणों में किया जाएगा. इसके अलावा इन सूत्रों ने बताया, ''इस यूनिवर्सिटी का उद्देश्य भारत को फिर से विश्व गुरु बनाने के साथ-साथ आधुनिक वैज्ञानिकों, तकनीक से जुड़े लोगों और वैदिक पंडितों को एक कॉमन प्लैटफॉर्म उपलब्ध कराना है, जिससे भारत के ज्ञान की एक नई और व्यापक धारा पैदा हो सके.''



'अशोक सिंघल वेद विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय' के पहले शैक्षणिक सत्र में 20 सब्जेक्ट पढ़ाए जाएंगे. इसमें जो विषय पढ़ाए जाएंगे, वह इस तरह हैं. इनमें एग्रीकल्‍चर (कृषि तंत्रम), आर्किटेक्‍चर (वास्‍तु तंत्रम), एनवायरमेंट साइंस पेलियोग्राफी (लिपि विज्ञान), वारफेयर (युद्धतंत्रम). इसके अलावा दूसरे विषय भी यहां पर पढ़ाए जाएंगे.


सूत्रों के मुताबिक, यह यूनिवर्सिटी नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2019 का भी पालन करेगी, जिसके जल्द ही फाइनल होने की संभावना है.

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"#बाज़ के बच्चे #मुँडेर पर नही उड़ते।"

बाज पक्षी जिसे हम #ईगल या #शाहीन भी कहते है। जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते है उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे में दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है।  पक्षियों की दुनिया में ऐसी Tough and tight training किसी भी ओर की नही होती।

मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग 12 Kmt.  ऊपर ले जाती है।  जितने ऊपर अमूमन जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज 7 से 9 मिनट का समय लेती है।

 यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की कठिन परीक्षा। उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है? तेरी दुनिया क्या है? तेरी ऊंचाई क्या है? तेरा धर्म बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है।

धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग 2 Kmt. उस चूजे को आभास ही नहीं होता कि उसके साथ क्या हो रहा है। 7 Kmt. के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते है, वह खुलने लगते है।

लगभग 9 Kmt. आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते है। यह जीवन का पहला दौर होता है जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है।

अब धरती से वह लगभग 3000 मीटर दूर है लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है। अब धरती के बिल्कुल करीब आता है जहां से वह देख सकता है उसके स्वामित्व को। अब उसकी दूरी धरती से महज 700/800 मीटर होती है लेकिन उसका पंख अभी इतना मजबूत नहीं हुआ है की वो उड़ सके।

धरती से लगभग 400/500 मीटर दूरी पर उसे अब लगता है कि उसके जीवन की शायद अंतिम यात्रा है। फिर अचानक से एक पंजा उसे आकर अपनी गिरफ्त मे लेता है और अपने पंखों के दरमियान समा लेता है।
यह पंजा उसकी मां का होता है जो ठीक उसके उपर चिपक कर उड़ रही होती है। और उसकी यह ट्रेनिंग निरंतर चलती रहती है जब तक कि वह उड़ना नहीं सीख जाता।

यह ट्रेनिंग एक कमांडो की तरह होती है।. तब जाकर दुनिया को एक बाज़ मिलता है अपने से दस गुना अधिक वजनी प्राणी का भी शिकार करता है।

हिंदी में एक कहावत है... "बाज़ के बच्चे मुँडेर पर नही उड़ते।"
बेशक अपने बच्चों को अपने से चिपका कर रखिए पर  उसे दुनियां की मुश्किलों से रूबरू कराइए, उन्हें लड़ना सिखाइए। बिना आवश्यकता के भी संघर्ष करना सिखाइए।

वर्तमान समय की अनन्त #सुख #सुविधाओं की आदत व अभिवावकों के बेहिसाब लाड़ प्यार ने  मिलकर,  आपके बच्चों को "#ब्रायलर #मुर्गे" जैसा बना दिया है जिसके पास मजबूत टंगड़ी तो है पर चल नही सकता। वजनदार पंख तो है पर उड़ नही सकता क्योंकि..

_"गमले के पौधे और जंगल के  पौधे में बहुत फ़र्क होता है।